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शहर में गाम जी लेंगे ! / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
एक गन्ना चूसकर हम
इस शहर में
गाम जी लेंगे,
गाम जी लेंगे कि अपना नाम जी लेंगे !
धूल - धूसर पँथ गोहर गँध
खेतों का खुलापन
और कोल्हू - बैल के तन में अभी
ज़िन्दा हिरन - मन,
चौकड़ी भरते ख़यालों को सँजोए
एक आँगनहीन घर बेनाम जी लेंगे !
दूब - जैसा नेह
आँगन - गेह चौपालें - कथाएँ
नागफन ब्योहार अन्धियारा घुटन
गूँगी बिथाएँ,
देखने - भर को बड़प्पन हम बड़ों का
हर गली कूचा सड़क बदनाम जी लेंगे !
धान - गेहूँ - ईख - जैसी सीख
पिसना और पिरना
टूटकर उम्मीद जुड़ने की लिए
पल - छिन बिखरना,
ज़िन्दगी की हर किरच फिर भी समेटे
बेमज़ा - बेसूद सुबहो - शाम जी लेंगे !