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शहर में पिता / संतोष अलेक्स
Kavita Kosh से
शहर में आए महीने बीत गए
एक दिन लाठी टेकते हुए चले धीमे से
अर्पाटमेंट के पार्किंग एरिया में
स्केट बोर्ड चलाकर आया बच्चा
टकराया पिता से
बच्चे इकट्ठे हो गए
सेकूरिटि दौड़कर आया
माफी मांगी बच्चे के मां बाप ने
पिता को अस्पताल ले गए
रास्ते में मुझे फोन से सूचित किया
मैंने होमनर्स का इंतज़ाम किया
पिता अस्पताल से वापस फ्लैट में पहुँचे
होम नर्स ने बिस्तर बिछाया
दवाई दी
रोटी खिलाकर
चली गई अपार्टमेंट के बी ब्लाक में
पिता की दृष्टि शोकेस पर पड़ी
वहां सीपियों, शंखों, घोघों
की आहों- कराहों में
बूढ़े पिता की चीख विलीन हो गई