बहते लहू ने आज पहली बार जाना है
खंजर का मेरे जिस्म से गहरा याराना है
फँसेंगे अब परिंदे जाल में साजिश है गहरी
सदियों से भूखी रूह ने देखा जो दाना है
हैरान हो कि सर पटककर हँस दिया मैंने
अरे,पत्थर बने महबूब को फिर से मनाना है
लोमड़ गीदड़ है, सियार है, कुछ भेड़िये है
फिर क्यों लोग कहते है शहर मेरा वीराना है
निकलते रहे आँसू अगर यूँ ही दीवानों के
'सागर' तेरे पानी को एक दिन सुख जाना है