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शांत जल में खलबली है / हरिवंश प्रभात

शांत जल में खलबली है।
एक फिर दुल्हन जली है।

आग की लपटें बताओ,
कैसी यह पछुआ चली है।

भूल जायेंगे सभी जब,
हफ़्तों तक चर्चा चली है।

होगा भी बदलाव कैसे,
सोच केवल मखमली है।

कोई कहता रात प्यारी,
सुबह दूजे को भली है।

मैं रहूँगा ज़िन्दा कबतक,
ज़िंदगी अनबुझ गली है।

साथ देता जो था मेरा,
बस उसी की यह गली है।