भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शाम / उंगारेत्ती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: उंगारेत्ती  » संग्रह: मत्स्य-परी का गीत
»  शाम

शाम के तंग दर्रों के क़दमों में

बहता है वह

जैतून-वर्णी सोता


और पहुँचता है

उस भंगुर भुलक्कड़ आग तक ।


धुन्ध में सुनता हूँ अब मैं

झींगुरों और मेढ़कों को

जहाँ हौले-हौले

घासें काँपती हैं ।