भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शिष्टाचार की स्थिति / मुनीश्वरलाल चिन्तामणि
Kavita Kosh से
जब से
शिष्टाचार ने
खो दिया है
अर्थ अपना
जब से
शिष्टाचार
औपचारिकता बन गया है
तब से
उसके प्रति
मन में
बेहद वितृष्णा
बेतरह घृणा
पैदा हुई है
उन लोगों की संख्या
कम नहीं
जो हँस लेते हैं
दाँत दिखाकर
और हृदय
छिपा लेते हैं |
हाथ मिलाने से पहले
तुरंत छुड़ा लेते हैं
अब शब्द
सदिच्छा को
व्यक्त करने के लिए नहीं
बल्कि लोगों से
पिण्ड छुड़ाने के लिए
निकलते हैं |
हमारे सड़ाँध
माहौल में
आज शिष्टाचार
बाँझ की स्थिति में है |