शून्य की यात्रा/रमा द्विवेदी
शून्य! जीवन- यात्रा का आरंभ,
जन्म जीवन का अवतरण,
न भाषा,न सामर्थ्य,
चलना, बोलना सब शून्य,
माँ का दुग्ध-पान,
तन-मन की शक्ति की वृद्धि,
माँ की उंगली का सहारा,
शिशु के शून्य से जुड़ जाता है जब,
चलने का सामर्थ्य विस्तार पाता है तब।
शिशु का नि:शब्द शून्य,
जब माँ की तोतली भाषा से,
जुड़ जाता है तब,
उसका शब्द ज्ञान,
वटवृक्ष सा सघन-गहन बन,
दूसरों के शून्य को,
अंकों में बदलने की सामर्थ्य,
पा जाता है,
शून्य से शून्य तक की यात्रा,
कभी न समाप्त होने की यात्रा,
जीवन जब भी जटिल-कठिन लगे,
शून्य में खो जाओ,
शून्य से फिर आरंभ करो,
जीवन को नई ऊर्जा,
नई स्फूर्ति का अहसास,
यह अहसास ही ,
शून्य को अंकों में बदल देता है,
और फिर चरम बिन्दु को पाकर,
फिर शून्य में बदल जाता है,
जीवन का शून्य मृत्यु,
मृत्यु का शून्य जन्म।