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शेष अछि प्राण-रस / सुस्मिता पाठक

 
बन्न कोठलीमे
आदमी निर्विघ्न सूतैत छि
बन्न कोठली साक्षी अछि
जे बच्चा रहि-रहि कनैत अछि

बन्न कोठलीमे
रहरहाँ बजैत अछि चूड़ी
बन्न कोठली नपैत अछि
प्रतिदिन अनेक मीलक दूरी

बन्न कोठलीक
सपना थिक महँक
आ ताहि पर
हावी अछि दारू

बन्न कोठली
राति भरि कनैत अछि
बन्न कोठलीमे फड़फड़ाइत अछि हजारो पृष्ठ
गढ़ैत अछि प्रतिदिन
एकटा नव इतिहास

बन्न कोठलीमे घुटन अछि
चीत्कार अछि
उत्तेजना अछि
मुदा अखनो बचल थोड़ेक आस अछि
आ बन्न कोठलीमे
अखनो शेष अछि प्राण-रस
शेष अछि
खिड़की खोलि लेबाक
विश्वास।