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श्वास / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
साँसें हैं
चलती हुई लगातार
वही-वही साँसें
कभी उदासी
तो कभी उबासी से भरी हुईं
ऐसे में
तुम्हारी मुस्कान से
दोनों से परे
जागती है श्वासों में
एक नई श्वास