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संक्रमण / महेन्द्र भटनागर

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यह नहीं होगा —
बंदूक की नोक
सचाई को दबाये रखे,
आदमी को
आततायी के पैरों पर
झुकाये रखे,
यह नहीं होगा !

पशुता की गुलामी
अनेकों शताब्दियाँ
ढो चुकी हैं,
लेकिन अब
ऐसा नहीं होगा !

यातनाओं की किरचें
भोथरी हो चुकी हैं,
क्या तुम नहीं देखते —
क्रूर जल्लादों की
वहशी योजनाओं की
बुनियादें हिल रही हैं ?
मौत की
काल-कोठरी बने
हर देश को
ज़िन्दगी की
हवा और रोशनी
मिल रही है !

घिनौनी साज़िशों का
पर्दा उठ गया है,
सारा माहौल ही
अब तो नया है !