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संगमरमर / विजयदेव नारायण साही
Kavita Kosh से
लाख चाँदनियों, लाख बरसातों, लाख हवाओं
से धीरे-धीरे चिकना होता है
संगमरमर
छू कर देखो।
यह ठण्डा स्पर्श तुम्हारे हाथों में फफोले छोड़ जायेगा।