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संसर्ग / महेन्द्र भटनागर

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जब से
हुई पहचान
मूक अधरों पर
अयास बिछल रहे
कल गान !

देखा
एकाग्र पहली बार —
बढ़ गया विश्वास,
मन पंख पसार
छूना चाहता आकाश !