भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सखि हे हमर दुखक नहिं ओर / विद्यापति
Kavita Kosh से
सखि हे हमर दुखक नहि ओर .
इ भर बादर माह भादर सून मंदिर मोर .
झम्पि घन गर्जन्ति संतत भुवन भर बरसंतिया.
कंत पाहुन काम दारुण सघन खर सर हंतिया .
कुलिस कत सत पात मुदित मयूर नाचत मतिया.
मत्त दादुर डाक डाहुक फाटी जायत छातिया .
तिमिर दिग भरि घोर जामिनि अथिर बिजुरिक पांतिया.
विद्यापति कह कइसे गमओब हरि बिना दिन -रातिया.