भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सगुणोपासना / सूरदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अबिगत-गति कछु कहत न आवै ।
ज्यौं गूँगै मीठे फल कौ रस अंतरगत हीं भावै ।
परम स्वाद सबही सु निरंतर अमित तोष उपजावै ।
मन-बानी कौं अगम अगोचर, सो जानै जो पावै ।
रूप-रेख-गुन-जाति जुगति-बिनु निरालंब कित धावै ।
सब विधि अगम बिचारहिं तातैं सूर सगुन -पद गावै ॥1॥