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सचेत सीते / सुरंगमा यादव
Kavita Kosh से
100
लो खुले ठेके
प्राणों के मूल्य पर
राजस्व बढ़े।
191
दुर्वासा बना
लो दो हजार बीस
क्रोध में तना।
102
प्रकृति कहे
मुझसे बड़ा कौन ?
उत्तर मौन !
103
असंख्य तारे
खोया न जाने कहाँ?
भाग्य का तारा।
104
बुने हमने
उधेड़े समय ने
कितने ख्वाब।
105
कोरोना काल
योग व आयुर्वेद
बने हैं ढाल।
106
अर्थ के आगे
हैं मात्र अनुबंध
सारे संबंध।
107
वक्त का पंछी
धीरा-धीरे चुगता
देह की शक्ति।
108
तूने जो बोया
है काटने की बारी
अब क्यों रोया?
109
अंधी है दौड़
कैसे कितना पा लूँ
मची है होड़।
110
हो गया पूर्ण
देह से अनुबंध
प्राण-प्रयाण।
111
सचेत सीते
कितने ही मारीच
आज घूमते