भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सच / अनीता कपूर
Kavita Kosh से
सच लिखूँ तो
कविता झूठी हो जाती हैं
झूठ लिखूँ
रिश्ता बेमानी हो जाता है
कशमकश तो है
फिर भी दिल ने यही चाहा है
कि तुम हमेशा
मेरी कविता में जीवित रहो