कितना अच्छा था वह दिन
भेले ही अनजाने में लिखे थे   
और अक्षर भी ढाई थे  
लेकिन उनमें समाई दिखती थी 
           पूरी दुनिया  
और आज 
कितना स-तर्क होकर 
रच रहा हूं पोथे पर पोथे 
झलकता तक नहीं जिनमें 
मन का कोई कोना 
सच बता यार ! 
ऐसे में क्या जरूरी है मेरा कवि होना ?