सतवाणी (21) / कन्हैया लाल सेठिया
201.
अगम नहीं भव रो समद
पण लै पैली जाण,
नाख पोटळी दरब री
तिरसी तूंबां पाण,
202.
बगत नहीं थारै बळू
कर लै नीची नाड़,
बगत फिरयां बण कांकरो
पगां पड़ैलो पा’ड़,
203.
लोक लाज स्यूं डर मिनख
करै नहीं जे पाप,
पराधीन बै बापड़ा
ज्यूं कील्योड़ा स्याप,
204.
तू अनन्त रै वासतै
भोल्या जाप करोड़,
अणगिण स्यूं मिलणो हुवै
मिणियां गिणना छोड़,
205.
मत परकरमा कर बिरथ
बैठो रह इण ठौड,
दीठ राख मिलसी तनैं
बो कोनी रूंतोड़ !
206.
आगै लारै चालसी
पग दोन्यूं ओ नेम,
करयां ईसको गत कठै
फेर कुसल के खेम ?
207.
मै’ल झूंपड़ी है जिस्या
बिस्यो सहज वनवास,
देह नहीं पर दीठ में
थित प्रग करै निवास,
208.
जता जीव सैं रा अलग
करमां सारू दुंद,
निज री कूंची स्यूं खुलै
अंतर तालो बन्द,
209.
रस नै कर नीरस लगा
आतम तप री आंच,
इंयां ग्यान गाढो हुयां
बरत पलैला पांच,
210.
छोडै सोरै सांस कद
लाग्यो तिसणां भूत ?
कर ठुकंतरी सांतरी
काढ ग्यान रो जूत,