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सत्य संकल्प / प्रेमलता त्रिपाठी

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सत्य संकल्प लेकर बढ़ें हम सभी,
हो सके पूर्ण सब आज भी कामना।
शीश अपना झुके क्यों कहीं फिर कभी,
दृढ़ रहे यदि सदा नीति की भावना।

शंखनादों भरा हर कदम पर कदम,
हम बढ़ाते चले मान से आन पर,
जीत अपनी सदा है सुनिश्चित वहाँ,
हो सके रिपुदमन वीर का सामना।

हो कुटिल चाल यदि कर्म की राह पर,
सत्य संकल्प लेकर बढ़े शान से,
पाँव अंगद डिगा कब सके नाद पर,
है अडिग भाव ही कर्म की साधना।

प्राण दीपक जले सत्य जगमग करे,
प्रीति पावन बहे नेह की धार से,
सूर्य पूरब उगे हर सुबह यह कहे,
हो कदम उर सदन अंध को काटना।

शून्य निर्मल गगन तान छेड़े सदा,
गा रही हर दिशा ज्ञान की भारती,
प्रेम हारा नहीं सत्य साधक कभी,
हो हमारी सभी पूर्ण आराधना।