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सदा रहेंगे जागे / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
माना
सच्चाई यह,
राहों में गहन अँधेरा है
फिर भी हम लिए मशालें
और बढ़ेंगे आगे
लड़कर अँधियारों से हम
सदा रहेंगे जागे
माना
कदम-कदम पर
काँटो का हुआ बसेरा है
हम साथ चलेंगे लेकर
अपने सारे घर को
ऊँच-नीच के भेद भुला
दूर करेंगे डर को
माना
डरकर भागा
पश्चिम का नया सपेरा है
इसी बिंदु से पुन: नई हम
राह बनायेंगे
विश्व-बंधुता क्षीण हुई जो
पुन: रचायेंगे
माना
बढ़ना है तो
थोड़ा सा अभी उजेरा है