सनम गर करोगे मुहब्बत ज़रा सी,
मिलेगी अदा की नज़ाकत ज़रा सी।।
कभी रूठते हम कभी पास आते,
रहे आशिक़ी में ये आदत ज़रा सी।
तू देना दुआयें ओ दुनिया के मलिक,
रहे इस ज़मीं पर इनायत ज़रा सी।
नहीं ये तमन्ना मिले शानो शौक़त,
ख़ुदा दिल रहे बस इबादत ज़रा सी।
कभी भूल कर हम करें ग़फ़लतें तो,
रहे इल्म हमको नदामत ज़रा सी।
कहीं राह पर गर मिलें जुल्म साये,
तभी देना उनको नसीहत ज़रा सी।
सभी शेर ‘रचना’ कहे दिल ग़ज़ल के,
रखें याद जैसे अमानत ज़रा सी।