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सपने केवल सपने हैं / अजय अज्ञात
Kavita Kosh से
सपने केवल सपने हैं
बेशक सुंदर दिखते हैं
झूठे जग के रिश्ते हैं
कतरा कतरा रिसते हैं
बस जिस्मानी हैं बंधन
दिल से दिल कब मिलते हैं
अंजाने बिन शादी के
इक घर में संग रहते हैं
सच्चीझूठी बातों से
इक दूजे को छलते हैं
करते रहते जो आलस
वो हाथों को मलते हैं