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सपनों की दुनिया-1 / देवेन्द्र कुमार देवेश
Kavita Kosh से
कौन आरोपित करता है
हमारी उनींदी आँखों में / इतने भयावह सपने
अवतरित होकर माता की कोख से
भोगते हैं प्रत्यक्ष में / संसार का जो क्रूर यथार्थ
उससे भी दो क़दम आगे बढ़कर
बुनता है जो हमारे सपने
आख़िर क्यों नहीं चाहता वह
कि कुछ पल के लिए भी लें हम
किसी भी संसार से असंपृक्त होकर / एक गहरी नींद?