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सफर में ऐसे भी मंजर आए / अमरेन्द्र

सफर में ऐसे भी मंजर आए
दूर तक लोग थे न घर आए

मुझको लगता है मंै ही जाता हूँ
तन्हा-सा जब कोई नजर आए

जिन्दगी हो जहाँ, बुला लाओ
मेरी तो मौत की खबर आए

हम मना जिसके लिए करते रहे
क्या किया तुमने वो ही कर आए

उनको चेहरा कहाँ दिखाई दे
जिनकी आँखों में बस कमर आए

ऐसी क्या दुश्मनी थी मंजिल से
किसलिए राह में बिखर आए

तुम्हें तो जिन्दगी से नफरत थी
आज अमरेन्द्र तू किधर आए ।