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सभी जाने पहचाने / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
मुझे तो सभी लगते हैं जाने-पहचाने
सभी के चेहरे, जैसे मिल चुके उनसे कभी
सभी पत्तों में सबकी थोड़ी-थोड़ी महक है
और सभी स्थिर हो जाते हैं मेरी आंखों में
जैसे मैं पेड़ की तरह सबको चिपकाये हुए
और ये एक साथ हंसते-खेलते हैं
हमेशा मेरे साथ।