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सभी दिन होत न एक समान / महेन्द्र मिश्र
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सभी दिन होत न एक समान।
एक दिन राम लखन दूल्हा बने जानत सकल जहान।
एक दिन बन-बन फिरत भिखारी जागत होत बिहान।
एक दिन रावण बादशाह था चढ़ाता पुष्प विमान।
एक दिन खेपड़ी ताल बजावे लास पड़ी मैदान।
एक दिन राजा हरिश्चन्द्र को धन था मेरू समान।
एक दिन जा के बिके डोम घर पहरा देत मसान।
द्विज महेन्द्र अब चेत सबेरा क्या सोवत मैदान।
चिड़िया चूँग रही तेरी खेती फिर ना होत बिहान।