समधिन-2 / नज़ीर अकबराबादी
सरापा<ref>सिर से पैर तक का, शिखनख</ref> हुस्ने समधिन गोया गुलशन की क्यारी है।
परी भी अब तो बाजी हुस्न में समधिन से हारी है।
खिची कंघी, गुंथी चोटी, अभी पट्टी लगा काजल।
कमां अब्रू<ref>भवें कमान की तरह</ref> नज़र जादू निगह हर एक दुलारी है।
जबी<ref>ललाट</ref> माहताब<ref>चांद</ref>, आंखें शोख़, शीरीं लब, गोहर दन्दा<ref>मोती जैसे दांत</ref>।
बदन मोती, दहन गुंचा, अदा हंसने की प्यारी है।
नया कमख़्वाब का लहंगा झमकते ताश की अंगिया।
कुचें तस्वीर सी जिन पर लगा गोटा किनारी है।
मुलायम पेट मख़मल सा कली सी नाफ़<ref>नाभि</ref> की सूरत।
उठा सीना सफ़ा पेडू़ अजब जोवन की नारी है।
लटकती चाल मदमाती चले बिछुओं<ref>बिछुआ-पैर की उंगलियों में पहने जाने वाला जेवर</ref> को झनकाती।
भरे जोवन में इतराती झमक अंगिया की दिखलाती।
कमर लहंगे से बल खाती लटक घूंघट की भारी है।