समय के नाम एक पत्र / मोहन अम्बर
जागरण की इस घड़ी तुम सो गये तो?
द्वार पर आई किरण का मन दुखेगा।
मान जाओ अब उषा की आँख में काजल न आँजो,
मेघ हो तुम प्यास वाली पुस्तिका के पृष्ठ बाँचो,
पर सुना है तुम निगलना चाहते हो ऊगता रवि,
इसलिये मैं लिख रहा हूँ पत्र तुमको,
तुम सवेरे पर अँधेरा बो गये तो?
दीप की अंतिम जलन का मन दुखेगा।
जानता हूँ अंधड़ों ने डाल से तुमको गिराया,
तो दुखे क्यों यों तुम्हारा तन सर्जन की गोद पाया,
पर सुना है तुम बदलना चाहते हो रूप अपना,
इसलिये मैं लिख रहा हूँ पत्र तुमको,
फूल से कांटा अगर तुम हो गये तो?
राह पर बढ़ते चरण का मन दुखेगा।
दुख-सुखों का देवता है यह सचाई जानते हो,
फिर बताओ मुश्किलों से मात कैसी मानते हो?
पर सुना है तुम छलकना चाहते हो अश्रु बनकर,
इसलिये मैं लिख रहा हूँ पत्र तुमको,
दर्द-बोझे से डगर पर रो गये तो?
सामने आती सुखन का मन दुखेगा।
ये बजारों की चमक से बेहया जो जुड़ रही है,
सत्य कहना क्या हवाएँ ठीक पथ पर मुड़ रही है?
पर सुना है तुम उलझना चाहते उन गलतियों में,
इसलिये मैं लिख रहा हूँ पत्र तुमको,
लाज का परिचय अगर तुम खो गये तो?
नग्नता ढ़ाँके वसन का मन दुखेगा।
जागरण की इस घड़ी तुम सो गये तो?
द्वार पर आई किरण का मन दुखेगा।