सम्बंधो के रंग / हर्षिता पंचारिया
जब मुझे पहली बार प्रेम हुआ तो,
मेरे प्रेमी के पहले स्पर्श से मेरे गाल "गुलाबी" हो गए
इस गुलाबी रंगत के चटकारे प्रेमी से अधिक
मोहल्ले की उन ख़ाली बैठी औरतों ने लिए जिन्होंने,
अपनी बच्चियों के भविष्य में चूल्हे की राख लिखी
जब मेरे पिता ने मेरे हाथ "पीले" किए तो मैंने जाना कि,
मेरे पिता सृष्टि के धनाढ्य पिताओं में से एक है
अपना हृदय सौंप कर भी जीवित रहने का तरीका
वैज्ञानिको को एक बेटी के पिता से सीखना चाहिए
मेरे स्त्रीत्व का बोध करवाने वाला
सुहाग की सेज से लेकर माथे से माँग तक,
सूरज-सा सजता हुआ,
मेरे प्रिय "लाल" रंग
मैं तुमसे माँगती हूँ कि
अंतिम यात्रा तक मेरा तुम्हारा साथ बना रहें
हाथों में "हरी" चूड़ियों और पीलिये के आँचल में
मैंने जब-जब तुम्हें उठाया तो लगा "मेरे लाल" ,
मेरा लालमयी होना पूर्ण हुआ
अब उम्र के इस ढलान पर
जब "नीले" आसमान में बादल छाते है तो लगता है,
किसी ने मेरी नीली पड़ी रेखाओं पर
"सफेद" रुई का फाहा रख दिया है
आँखों में "काला" काजल डालने की और
इन "सफ़ेद" होते बालों को काला करने की बस
इतनी-सी ही जद्दोजहद है कि,
"बलाओं" का रंगों के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश वर्जित हो
" स्त्रियों के जीवन का सम्बंध रंगों से नहीं,
अपितु स्त्रियों के सम्बंध ही तो जीवन के रंग है "