सर्वहारा / राणा प्रताप
हज़ारों वर्षों से हम पत्थर काट रहे हैं
महलों और गुम्बजों का निर्माण कर रहे हैं
बिड़लाओं के भगवान गढ़ रहे हैं
औज़ार हमारे हाथ हैं
शोहरत और सुविधा उसके साथ
हम पत्थर काट रहे हैं
हम अन्धी गुफ़ाओं के द्वार काट रहे हैं
भित्ति-चित्रों का निर्माण कर करे हैं
रंग और तूलिका हमारे हाथ है
नाम और इतिहास उसके साथ
हम गुफ़ाएँ काट रहे हैं
हम खदानों के पेट काट रहे हैं
आग का निर्माण कर रहे हैं
ईंधन जुटा रहे हैं
अन्धेरा जुटा रहे हैं
अन्धेरा हमारे साथ है
उजाला उसके साथ
हम अपना पेट काट रहे हैं
हम लोहा गला रहे हैं
विभिन्न औज़ारों का निर्माण कर रहे हैं
तिजोरियाँ बना रहे हैं
हथौड़ा हमारे साथ है
पूँजी उसके साथ
हम लोहा पीट रहे हैं
हम मिट्टी और जंगल काट रहे हैं
खेतों का निर्माण कर रहे हैं
फ़सलें उगा रहे हैं
उत्पादन हमारे हाथ है
मुनाफ़ा उसके हाथ
हम मिट्टी और जंगल काट रहे हैं
हम पेड़ों की छाल काट रहे हैं
नहीं, अपना पेट काट रहे हैं
बीबी-बच्चों के तन गला रहे हैं
भूख और पत्ता हमारे साथ हैं
देश की सत्ता उसके हाथ
हम पेड़ों की छाल काट रहे हैं
हम लकड़ी काट रहे हैं
मेज़ और कुर्सियाँ बना रहे हैं
दरवाज़े और खिड़कियाँ जड़ रहे हैं
आरी और रन्दा हमारे हाथ है
आरामग़ाह उसके साथ
हम लकड़ी काट रहे हैं
हम धागे कात रहे हैं
वस्त्रों का निर्माण कर रहे हैं
बेल-बूटे काढ़ रहे हैं
सूई की चुभन हमारे हाथ है
रंगों की फड़कन उसके साथ
हम धागे कात रहे हैं
हम सीसा गला रहे हैं
ज़रूरतों के सामान निर्मित कर रहे हैं
सांसों की धौंकनी से उसे बल दे रहे हैं
आग हमारे हाथ है
आग का खेल उसके साथ
हम सीसा गला रहे हैं
हम हज़ारों वर्षों से गन्दगी काट रहे हैं
सफ़ाई का इन्तज़ाम कर रहे हैं
मैला ढो रहे हैं
झाड़ू और मटका हमारे हाथ है
फूलों का गुच्छा उसके साथ
हम हज़ारों वर्षों से गन्दगी काट रहे हैं
हम रिक्शा खींच रहे हैं
अपना ख़ून जला रहे हैं
तपेदिक की बीमारियाँ हासिल कर रहे हैं
बीबी-बच्चों का दुख हमारे साथ है
ख़ून का किराया उसके हाथ
हम अपना ख़ून जला रहे हैं
हम दिल्ली, बम्बई और कलकत्ता के
नरक काट रहे हैं
ज़िस्म और जान बेच रहे हैं
झुग्गी-झोपड़ियां हमारे साथ हैं
कार और बंगले उसके साथ
हम नगरों के नरक काट रहे हैं
हम धूप और बारिश काट रहे हैं
ठण्ड की सघनता सह रहे हैं
वज्र आत्माओं का निर्माण कर रहे हैं
धरती और आकाश हमारे साथ है
हवाई-सुख उसके साथ
हम धूप और बारिश काट रहे हैं
हम पहाड़ काट रहे हैं
दुखों और यातनाओं के पहाड़ काट रहे हैं
चार पहाड़ काट रहे हैं
औज़ार हमारे हाथ है
काग़ज़ी बाघ उसके साथ
हम पहाड़ काट रहे हैं
हम ग़लत इतिहासों के शब्दजाल काट रहे हैं
शोषितों का साहित्य लिख रहे हैं
नया समाज गढ़ रहे हैं
अक्षरों और शब्दों की फ़ौज हमारे साथ है
प्रेस और मशीनरी उसके हाथ
हम ग़लत इतिहासों के शब्दजाल काट रहे है
हम कलाकार हैं, कारीगर हैं, कवि हैं
मज़दूर हैं, किसान हैं
देश की बहादुर जनता हैं
क्रान्ति का रास्ता हमारे साथ है
दमन और शोषण का मार्ग उसके साथ
हम सब क्रान्तिकारी हैं
हम भविष्य के कारीगर हैं, इंजीनियर हैं
मानव आत्माओं के शिल्पी हैं
मुक्ति-सेना के विशाल फ़ौज हैं
लाल सुबहों के प्रकाश हैं
मैदानों, घाटियों और पर्वतों पर छा जाना चाहते हैं
हम धरती के लाल हैं