सहकारी संस्कृति / शिव कुमार झा 'टिल्लू'
घोर आश्चर्य
बदलि गेल भारत
बदलि गेल संस्कृति
मुदा भाव त' शाश्वत
हमरा सभक लेल सहकारी संस्कृति
नहि-नहि ई त' विकृति
बेकारी संस्कृति
योगदानक टटके याम छल
काल कटने नहि कटैत छल
वरीय सहकर्मी काज बुझबैत-बुझबैत
कार्यालक दूरभाष ल' क'
अपन नवविवाहिता अर्धांगिनीक संग
भ' गेल छथि अंतरंग
हमरो पहर कट' लागल
वाह रौ सपना
कोना ओझरा जाइछ मनुक्ख
लगैत छल जेना एहि जहान मे
छथि मात्र ओ दुनू प्राणी
सोहनी महिवाल आ लैला मजनूं
झुझुआन लाग लगलाह
मझिनी सँ चाहक काल आबि गेल
मुदा! शस्त्र अर्पण वा समर्पण
के करथि?
एतबे मे बॉस आबि गेलाह
हुनका पर नजरि परितहि
हमर ट्रेनर एकाएक रौद्र रूप
दूरभाष मे अपन सहधर्मिणी सँ
साले जब औकाद नहीं था
क़िस्त देने का समय से
क्यों लिया गाड़ी ?
अहि रौ बाप!!!!!!!
की भेल एकरा
ब'हु केँ पुरुख बला गारि
क्षणे मे बताह त' नहि भ' गेल
बॉस पुछलनि कौन है
एहेन लोकक नाओं लेलक
आश्चर्य!!!हम टाटाक लेल नव
कुर्सी सँ ठाढ़ भ' गेलहुँ
ओकरा गारि देवाक साहस!!!!
बॉस फ़ोन ल' क' हेलो हेलो
कोनो उत्तर नहि
ओ अपन चैम्बर मे
फेर फ़ोन क' क' कहि देलनि
मालिक नहि कंटाह अछि
डिस्टर्व क' देलक
बाद मे करैत छी!!
फेर हमरा दिश
झाजी सीखू
कॉर्पोरेट कल्चर
सहकारी संस्कृति
झूठ बजबाक कला
तखने जीब' देत
दक्षिणाहा खट्टा सब
कत' फँसि गेलहुँ गए माय
हौ भाय
बचि क' रह'
सहकारी संस्कृति सँ
जौं हमरा जकाँ झूठ नहि सोचब?
होमय पडत मधुमेह
आ उच्च रक्तचाप सं पीड़ित
हमरे जकाँ
मुदा जौं सोचब आ करब
हमर सहकर्मी जकाँ
तं ' रहब खनखन
मुदा!! माथ उठा क' नहि
किएक तं बॉस बुझि गेल
कल्चर रहौक कोनो
फूसि नहि झपाइछ