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सहसमुखी चौक पर / सोमदेव
Kavita Kosh से
हमरासँ अहाँ बिगड़ल छी। जहान बिगड़ल अछि। की करी ? मर’क
इच्छा अछि, मुदा विद्रोही मोन लाइन पर सूतल एकटा देहकें एना क’
घीचि लैछ, जेना बंसीमे सटाक् दए तानि लेल गेल एकटा
माछ। आह ! थरथराइत आस्थाक लग्गा ! एकर छीप पर
हम समताक झण्डा कोना क’ टांगी ? आइ हमरा किऐ लागैछ
जेना हम असगर भ‘ गेल छी आर छटपटा रहल छी एकटा
समसमुखी चौक पर। आर सिपाहीक खाली स्थान पर ठाढ़
भेल ताकि रहल छी ‘मनुक्खक’ अभियान विश्वकोषमे आर
देखि रहल छी सहस्त्रो पथ पर सहस्त्रो कात गाड़ीक कतार लागि
गेल अछि। क्यो पाछाँ नहि भ’ सकैछ। क्यो आगाँ नहि
जा सकैछ। सभी इंजिन घरघराइत। सभ उत्सुक। जेना हम
ठीके आत्महत्याक प्रदर्शन करबाक लेल बीचमे ठाढ़ भेलहुँ अछि।