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सही संस्कार आवश्यक है / चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध'

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प्रेम को बसरा के बॅटता जा रहा संसार है
इससे घटता जा रहा सद्भाव, ममता, प्यार है

मन में बटती जा रही नित स्वार्थ की ही भावना
भुला यह कि औरों को भी जीने का अधिकार है

मस्त है हर आदमी अपने रचे संसार में
होड है बस धन कमाने हर एक जान बीमार है

सुख के सब नये साधन को जुटाने की चाह में
अनैतिकता से कमाने का बढ़ा व्यवहार है

बदलती जातीं पुरानी मान्य सब परिपाटियाँ
इससे बढते जा रहे नित नये अत्याचार हैं

स्वतः मरकर दूसरों को मारने में क्या है सुख?
समझ पाना कठिन है आतंक का ये विचार है

हिंसा से तो फैलते दुख मेल में ही शांति है
आपसी सद्भाव, ममता, प्रेम का आधार है

सारी दुनियाँ ग़लत रस्ते पै ही बढती जा रही
आदमी को सही पथ पै चलाता संस्कार है