साँझ केॅ देहरी पर जलाबै दिया।
आँचरोॅ आढ़ मेॅ मुसकुराबै दिया।
सीसकारी भरै कान मेॅ जों हवा
देह झारी जरा झिलमिलाबै दिया।
फूँक मारी बुताबै पिया जोर सेॅ
आँख दाबी ठहाका लगाबै दिया।
पातरोॅ-पातरोॅ ठोर मेॅ षौक से
कारखी केेॅ लपेसी रंगाबै दिया।
नीन नखरा करै खूब जों आँख मेॅ
तेॅ सुनाबी क लोरी सुताबै दिया।