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साँझ ढले जो आते पंछी / प्रेम भारद्वाज

साँझ ढले जो आते पंछी
चीर कलेजा जाते पंछी

कैसे जाल बिछाए हमने
नज़र नहीं अब आते पंछी

कर दें पूरा दाना पानी
तब खुलकर बतियाते पंछी

हम भी इनके पंख चुराते
पास अगर जो आते पंछी

मिलता चुग्गा चैन ठिकाना
गीत पुराना गाते पंछी

प्रेम ठिकाना कर लो वर्ना
हेरो आते जाते पंछी