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साँसें जैसे बानी है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
साँसें जैसे बानी हैं ।
लिखती नित्य कहानी हैं।।
मन के गलियारे फिरतीं
यादें नयी पुरानी हैं।।
धुंधली सारी तस्वीरें
कब किसने पहचानी हैं।।
रहीं सूरतें नक्श कई
दिल पर सब अनजानी हैं।।
सागर में उठने वाली
लहरें सब तूफानी हैं।।
किस्से कई सुनाये पर
लगते अब बेमानी हैं।।
भरते पेट सभी अपने
कहाँ बचे अब दानी हैं।।