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सांवण री डोकरी / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
धरती ऊपर कुदरत नाख्या
अै मुखमल सा बीज ?
लाजां मरयो गुलाल, रगत रै
लागी तालामेली,
हुई हींगळू आकळ बाकळ
ऊखा आभै भेळी,
रोळी रूळगी आंरै आगै
चिरमी कांई चीज ?
धरती ऊपर कुदरत नाख्या
घणां सुंरगा बीज ?
चुड़लो हुयो बिरंग, कसूमल-
आंगी मनां उतरगी,
मैंदी घणी उदास, चूनड़ी-
जाबक फीकी पड़गी,
रीसां बळती गई गोरड़ी-
मोढ़ण ऊपर कुदरत नाख्या
अै मुखमल सा बीज।
सांवण री डोकरड़ी फड़दी
दूजो मेळ न मिलसी,
आं री रंगत आगै माणक
मूगा लूकता फिरसी।
लालां रो निज री लाली पर
रयो न धीज पतीज,
धरती ऊपर कुदरत नाख्या
घणां सुरंगा बीज ?