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सांस घुटती है / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
सांस घुटती है कि जहरीली हवायें हो गईं
किस तरफ जायें कि धूमिल सब दिशायें हो गईं
शुद्ध और अशुद्ध वायु में कहाँ संतुलन है
कार्बन, मीथेन वाली सब हवायें हो गई
से हद पर भारी हुई ये नामुराद बीमारियाँ
अस्थमा, कैंसर को कमतर सब दवायें हो गई
एयर प्रदूषण बढ़ाया, वाहनों के धुंये ने
सड़ रहे कचरे से दूषित ये फिजायें हो गई
लील जायेंगी हमें सुनामियाँ, तूफान ये
अन्त है नजदीक ये संभावनायें हो गईं
हमको दे ताज़ा हवा, पीते रहे वो खुद ज़हर
नीलकंठी पेड़ों की शिवसी जटोय हो गईं।