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सागर और तट / सुरेश चंद्रा
Kavita Kosh से
प्रभंजन लौट आता है
प्रतीक्षा तक, हार-हार, बार-बार
सागर
लहरों की उपासना का
अनवरत उत्सव है
तट तटस्थ रहे
उत्साह तुम्हारा.