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साज-सज्जा / श्रृंगारहार / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

सहज-सौन्दर्य - लट छिटकल दू - चारि, सिंदूरी बिंदी भने
हँसि जगबय नव नारि, मनक भूख बिनु भूषने।।4।।

भूषण - पर शोीाा उपकारसँ जे अरजल तप योग
भूषित भूषन तकर फल तरुनी तन संयोग।।5।।

अंगुठी-नग - गोर-गोर आङुर उपर नग नीलम चमकैछ
अद्भुत! चंपा कली पर भ्रमर श्याम मड़रैछ!!6।।