मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
साते<ref>सप्त, सात</ref> हो घोड़वा गोसाई, सातो असवार।
अगिलहिं<ref>आगे के</ref> घोड़वा देवा सुरूज असवार॥1॥
घोड़वा चढ़ल देवा करथी पुछार<ref>पूछ-ताछ। सुख-दुःख की स्थिति। जो लोग कुशल-समाचार पूछने जाते हैं, उसे पुछार कहा जाता है।</ref>।
कउने अवादे<ref>आवास, ग्राम</ref> बसे, भगत हमार॥2॥
ऊँची कुरीअवा<ref>कुटिया</ref> देवा, पुरुबे दुआर<ref>द्वार</ref>।
बाजे मँजीरवा<ref>मंजीर, वाद्य</ref> गोसाईं, उठे झँझकार<ref>झनकार</ref>॥3॥
कथि केर दियवा देवा, कथि केर बात।
केथी केर घिया, जरइ सारी रात॥4॥
सोने केर दियरा देवा, कपासे केर बात।
सोरही के घिया देवा, जरइ सारी रात॥5॥
जरि गेलो घिया, मलिन भेलो बात।
खेलहुँ न पइलऽ देवा, चउ पहर<ref>चार प्रहर</ref>॥6॥
शब्दार्थ
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