साबरमती का संत / नील कमल
साबरमती के संत को आख़िरी बार
देखा गया गोधरा में
वह फूटे चश्मे से देख रहा था
जलती साबरमती-एक्सप्रेस
उसके कमरों में जलती लाशें
जिनमें एक संप्रदाय अपने बच्चे-बूढ़ों समेत
आग की भेंट चढ़ रहा था
साबरमती के संत को आख़िरी बार
देखा गया गोधरा में
वह टूटी लाठी से रोक रहा था
दंगाइयों की भीड़
जिनमें एक संप्रदाय र्इंधन बना आगे बढ़ रहा था
साबरमती के संत को आख़िरी बार
गोधरा में देखा गया
वह संख्याओं के गणित में उलझा
‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम’ गा रहा था
साबरमती का संत आख़िरी बार
दे रहा था आमरण अनशन की चेतावनी
आग गोधरा से पूरे गुजरात में फैल रही थी
जलाती गाँव-गाँव, शहर-शहर
साबरमती के संत को आख़िरी बार
गुजरात के दौरे पर देखा गया
वह दौड़ रहा था गाँव-गाँव, शहर-शहर
आग की लपटों में घिरा
कच्चे सूत में लिपटा वह इकहरा बदन
सोच रहा था ‘नाताल’ से ‘चंपारण ’तक के संदर्भ
साबरमती के संत को आख़िरी बार
‘लाहौर के दंगे ’याद आ रहे थे
उसे ‘नोआखाली ’याद आ रहा था ।