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सार / हरीश करमचंदाणी
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फल की चिंता नहीं की
चखते रहे हमेशा दूसरे
रहा कर्मवत सदा वह तो
मैंने पूछा
कयूँ ?
किसलिए ?
वह चुप रहा और अविचलित भी
उसके मौन में बाँच ली मैंने
पूरी गीता