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सावन आया धूल उड़ाता / देवमणि पांडेय
Kavita Kosh से
सावन आया धूल उड़ाता रिमझिम की सौग़ात कहाँ
ये धरती अब तक प्यासी है पहले सी बरसात कहाँ।
मौसम ने अगवानी की तो मुस्काए कुछ फूल मगर
मन में धूम मचाने वाली ख़ुशबू की बारात कहाँ।
खोल के खिड़की दरवाज़ों को रोशन कर लो घर आंगन
इतने चांद सितारे लेकर फिर आएगी रात कहाँ।
भूल गये हम हीर की तानें क़िस्से लैला मजनूँ के
दिल में प्यार जगाने वाले वो दिलकश नग़्मात कहाँ।
इक चेहरे का अक्स सभी में ढूंढ रहा हूँ बरसों से
लाखों चेहरे देखे लेकिन उस चेहरे सी बात कहाँ।
ख़्वाबों की तस्वीरों में अब आओ भर लें रंग नया
चांद, समंदर, कश्ती, हम-तुम,ये जलवे इक साथ कहाँ।
ना पहले से तौर तरीके ना पहले जैसे आदाब
अपने दौर के इन बच्चौं में पहले जैसी बात कहाँ।