कैसी यह विडम्बना
कैसा संयोग
घन-घन घनन के काल
स्वाती सा हाल
सूख रही धरती
सावन में परती
आपको क्या जनाब?
घोषित कर दो सुखाड़..
फिर क्या...????
आपकी चांदी ही चांदी
जनता को बुखार...
ओ नभ के रक्षक
ओ व्योम के तक्षक
ओ सुरेन्द्र
मन्यानिल की प्रवाह ...
आर्य की धरती पर भेजो
कोई रखवाला नहीं
कौन कहता है तुम नहीं
यदि तुम नहीं तो भारत कैसा
कैसा झारखंड
बुद्ध की बौद्धिक भूमि
का कैसा अस्तित्व ?
ये सारे रखवारे भी...
तेरी तरफ ही देख रहे हैं
इन सामंतो की पौबारह
मत होने दो
ऐसी धारा कलकल...
भेजो की किसान क्या
मजदूर भी अपनी बेटी का हाथ
अगले साल पीले करने की सोचे
अन्नपूर्णा के देश में
चिष्टान्न का भण्डारण हो...
ओ नभ के गरज
दिखा दे निराशावादियों को
भारत में भगवान है
अल्लाह है, गॉड है
जिस रूप में दिखो
सदा अभिनन्दन
हे अभ्यागत
इस स्नेह भूमि पर पुनि स्वागत...