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साहस / अमर सिंह रमण
Kavita Kosh से
खड़े शान से रहना अच्छा घायल शीश उठाए,
उचित नहीं है लिए हिम्मत, रखना शीश झुकाए।
यदि स्वतन्त्रता से अपनी है हमें तनिक भी प्यार,
तो खुशी से स्वीकार करें चाहे तोहमत लगे हजार।
देश प्रेम के साथ स्वार्थ की बात नहीं चल सकती,
सूर्य चमकता रहे अगर तो धूप नहीं ढल सकती।
बुरे भले सब इनसानों की मना रहे हैं खैर,
हमें बुराई से नफरत है नहीं बुरे से बैर।
करते प्यार देश से हैं हम, और देश के जन से,
छल कपट को दूर हटाकर सेवा करेंगे तन-धन से।
ना चाहिए हमें दुनिया की दौलत और ऊँचा नाम,
अपने होंठों को खिलने दो, कहकर जय सूनीनाम।