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साहित्यिक दोस्त / कमल जीत चौधरी

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मेरे दोस्त अपनी
उपस्थिति दर्ज करवाना चाहते हैं
वे गले में काठ की घण्टियाँ बान्धते हैं
उन्हें आर-पार देखने की आदत है
वे शीशे के घरों में रहते हैं
       
पत्थरों से डरते हैं
काँच की लड़कियों से प्रेम करते हैं
बम पर बैठ कर
वे फूल पर कविताएँ लिखते हैं
काव्य गोष्ठिओं में खूब हँसते हैं
शराबख़ानों में गम्भीर हो जाते हैं

यह भी उनकी कला है
अपनी मोम की जेबों में
वे आग रखते हैं