सिद्ध श्री गणेश परम गुरु ध्याईये।
दियो नाम उपदेश ध्यान उर लाईये।
उठी शबद घनघोर प्रेम जल बरसियो।
भीजत हे हरिदास और जग तरसियो।
दिया दामिनी खूब रूप में झलकता।
पल-पल करत प्रकाश पूरन मता।
दुश्मन देव बहाय भगत भरपूर है।
अमृत रूपी लहर सजीवन सूर है।
बिना विवेक विचार जीव बेकाम है।
जूड़ीराम चित चेत मूर निज नाम है।