भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सिर्फ एक लड़की / परवीन शाकिर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने सर्द कमरे में
मैं उदास बैठी हूँ
नीम वा<ref>अधखुले</ref> दरीचों से
नाम हवाएँ आती हैं
मेरे जिस्म को छूकर
आग सी लगाती हैं
तेरा नाम ले लेकर
मुझको गुदगुदाती हैं

काश मेरे पर होते
तेरे पास उड़ आती
काश मैं हवा होती
तुझको छू के लौट आती
मैं नहीं मगर कुछ भी
संगदिल<ref>पाषाण ह्रदय</ref> रिवाज़ों के
आहनी<ref>लौह</ref> हिसारों<ref>घेरों</ref> में
उम्र क़ैद की मुल्ज़िम
सिर्फ़ एक लड़की हूँ

शब्दार्थ
<references/>