भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुख की बरसात / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

              केवल वही बात !

सूना नभ, ऊना मन; ज्योति-पुंज धँसी
तमसावृत मेदिनी — विच्छेदिनी — हंसी
चू उठी नीरवता, कर साँ - साँ गुरु; फंसी
              खिसक चली रात !

नखत चले, जगत मुदित उठा अलस आज
नियति हिली तेज-पुंज — अंकम-भर लाज
विवरण मैं चली, अंक भरे तिमिर — साज
              होठों छवि हंसी प्रात !

बरस पड़ा नयनों से उषा-रंग लाल
साथ ही घनश्याम-प्रभ कसक कर निहाल
आई प्रिय-छवि उर, थे आनत अति भाल
              अनुनयमय गात !

क्षोभ क्या ? अशोभन है, निरा कुटिल कार्य
हृदयोदधि-अवगाहन-वाहन अवधार्य
निराकृति चुम्बन पर आकृति व्यवहार्य
              यह सुख की बरसात !

स्रस्त नखत-हारावलि अलकावलि-जाल,
विमनस्कता की कथा व्यथा थी विशाल
अरुण-तरुण-वरुण स्वर नाचे दे ताल
              मगन मनो स्नात !
              केवल वही बात !